इस रिपोर्ट में हम आपको पूरे मुल्क से आए उलेमा-ए-कराम की महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहे हैं, जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में आयोजित एक ऐतिहासिक वर्कशॉप में की गईं। यह वर्कशॉप ‘मॉडल करिकुलम फॉर मदरसा एंड NEP 2020’ के तहत 10-11 अगस्त 2024 को आयोजित की गई, और यह अपने आप में एक अहम कदम था। इसे AMU के ‘Centre for Promotion of Science’ द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें मुल्क भर से उलेमा और शिक्षाविदों ने शिरकत की।
इस वर्कशॉप का आयोजन AMU के वाइस चांसलर प्रोफेसर नईमा खातून की सरपरस्ती में हुआ। उनके साथ प्रोफेसर नसीम साहब और डॉक्टर अहमद मुज्तबा साहब भी इस आयोजन के महत्वपूर्ण किरदार रहे।
प्रोफेसर मुहम्मद जुनैद खलील साहब ने भी अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इस कार्यक्रम को सम्मानित किया। इस अवसर पर उड़ीसा से ऑनलाइन शिरकत करते हुए सैयद अहमद फैसल वाली रहमानी साहब ने एक बेहद महत्वपूर्ण बयान दिया।
सैयद अहमद फैसल वाली रहमानी का बयान
सैयद अहमद फैसल वाली रहमानी साहब ने अपनी ऑनलाइन स्पीच में कहा, “उत्तर प्रदेश में लगभग 8,449 मदरसे मंज़ूरशुदा हैं। इन मदरसों के लिए रजिस्ट्रेशन और कैटेगरी कानून का पालन करना जरूरी है। पब्लिक के पैसे हों या हुकूमत के, मदरसों को ऑडिट, लेबर रजिस्ट्रेशन, और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं का सही तरीके से पालन करना चाहिए।”
फहीम उस्मान सिद्दीकी का महत्वपूर्ण बयान
फहीम उस्मान सिद्दीकी साहब ने अपने खिताब में कहा कि मदरसों के कानूनी पसमंजर को मजबूत करने की सख्त जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मदरसों की योजना पर 70% वक्त दिया जाए और इसे अमल में लाने के लिए 30% वक्त देना चाहिए। मदरसा एक्ट 2004 में बना और इसके नियम 2016 में आए। जनवरी 2024 में SIT (Special Investigation Team) द्वारा जांच शुरू की गई। अब वक्त है कि एक ड्राफ्टिंग ग्रुप बनाया जाए और इसे एग्जीक्यूट किया जाए।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि करिकुलम के मामले में सभी को कानूनी जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि एक मंत्री की कलम से मौलाना अबुल कलाम आज़ाद बोर्ड को खत्म कर दिया गया, इसलिए दस्तावेज़ी मजबूती बेहद जरूरी है।
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली का पैगाम
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली का पैगाम भी इस वर्कशॉप में बेहद खास रहा। उन्होंने कहा, “पुराने निसाब को मौजूदा जमाने के लिहाज से तरतीब दिया जाए। नॉलेज सिटी, केरला में मदरसों का बेहतरीन मॉडल है, जिस पर हमें गौर करना चाहिए। उत्तर प्रदेश में मदरसों को बंद करके 20,000 मुद्ररसीन को बेरोजगार करने की तैयारी है। जब जब रुकावटें आती हैं, हम कानूनी तौर पर और मजबूत होते हैं। नेशनल लेवल पर एक काबिल कमेटी बनाई जाए, जो 60,000 मदरसों की रहनुमाई कर सके।”
अन्य उलेमा-ए-कराम की महत्वपूर्ण बातें
मौलाना इब्राहिम मदनी साहब ने कहा, “मदारिस का निजाम मिल्ली जरूरत है।”
मौलाना जाइम इस्लाम उड़ीसा ने कहा कि मदरसों को NIOS (National Institute of Open Schooling) से फायदा उठाना चाहिए।
मौलाना फाज़िल मिस्बाही ने कहा, “कुछ मदरसे जो मॉडर्न एजुकेशन पढ़ा रहे हैं, उन्हें क्वालिटी एजुकेशन पर ध्यान देना चाहिए और दीनी तालीम के साथ रोजगार परक बनाना चाहिए।”
डॉक्टर मोहम्मद मोहिउद्दीन गाज़ी ने कहा, “मदरसों से इल्म-ए-अमल की रहनुमाई करने वाले निकलते हैं। मदरसों के तलबा को हाई स्कूल की सर्टिफिकेट लेने से कहीं ज्यादा हाई स्कूल के उलूम की जरूरत है।”
डॉ उबैद इकबाल कासिम ने जोर देकर कहा कि सभी मदरसों को आपस में मिलकर कोर्स तैयार करना चाहिए।
मौलाना मदनी साहब ने बताया, “2016 में मदरसों की फाइलें अटकी हुई हैं, लेकिन मंजूरी अभी तक बंद है।”
मौलाना रफ़ाकत कासमी साहब ने कहा, “दीनी मजामीन में तब्दीली नहीं चाहिए, लेकिन असरी मजामीन में अपडेट जरूरी है।”
मौलाना खालिक नदवी साहब ने कहा, “सभी मसलक मिल्ली जरूरत के मुताबिक इज्तमाई तौर पर काम करें।”
AMU के प्रोफेसर एम सऊद आलम कासमी का बयान
AMU के प्रोफेसर एम सऊद आलम कासमी साहब ने कहा, “NEP 2020 मदरसों के तलबा के हक़ में है और हमें इस पर गौर करना चाहिए।”
कार्यक्रम की कवरेज
इस पूरे प्रोग्राम की कवरेज दैनिक छठी आंख समाचार पत्र की टीम ने की। प्रधान संपादक वाई के चौधरी, बनारस मंडल से यूपी हेड रियाज अहमद, क्राइम रिपोर्टर चौधरी एम आई खान, पत्रकार वसीम खान, और पत्रकार कमरुद्दीन खान ने इस वर्कशॉप की हर गतिविधि पर पैनी नज़र रखी और इसे कवर किया।
इस रिपोर्ट को तैयार करते हुए हमारा मकसद है कि आपको हर एक महत्वपूर्ण बात से अवगत कराएं, ताकि आप वाकई समझ सकें कि हमारे मुल्क के मदरसे और उनकी शिक्षा प्रणाली किस दिशा में जा रही है और इसमें क्या-क्या बदलाव की जरूरतें हैं। उम्मीद है कि यह रिपोर्ट आपको पसंद आएगी और इससे आपको इस मुद्दे की गहराई समझने में मदद मिलेगी।