अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के Centre of Advanced Study Department of Urdu के ज़ेरे-एहतमाम स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सालाना मुशायरे का आयोजन किया गया,
जिसमें उर्दू अदब के बेहतरीन शायरों ने अपनी शायरी से महफ़िल को रौशन कर दिया। इस सालाना मुशायरे की सदारत AMU की वाइस चांसलर, प्रोफेसर नईमा खातून ने की,जबकि निज़ामत के फराइज़ प्रोफेसर सिराज अजमली ने बखूबी अंजाम दिए।
मुशायरे की शुरुआत उर्दू विभाग के अध्यक्ष, प्रोफेसर कमरुल हुदा फरीदी के ख़ुतबे से हुई, जिसमें उन्होंने उर्दू अदब और इसकी तहज़ीब के महत्व पर रोशनी डाली।
इसके बाद, AMU के प्रॉक्टर प्रोफेसर वसीम और असिस्टेंट प्रॉक्टर प्रोफेसर सय्यद नवाज जैदी ने भी अपने ख़्यालात का इज़हार किया। सिक्योरिटी ऑफिसर इरफान साहब और अन्य प्रतिष्ठित प्रोफेसर भी इस यादगार शाम के गवाह बने।
इस मुशायरे में मुईद रशीदी, प्रोफेसर मेहताब हैदर नकवी, प्रोफेसर गुलाम सरवर खान, डॉक्टर शहाबुद्दीन, डॉक्टर अब्दुल मुईद, डॉक्टर सरफराज अनवर, मिस्टर नासिर शकेब, मिस्टर राहत हसन, डॉक्टर नसीम सिद्दीकी, प्रोफेसर अहमद महफूज और सलमा शाहीन
इस मुशायरे ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सालाना कार्यक्रमों में अपनी खास जगह बनाई है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित इस महफ़िल ने न सिर्फ उर्दू अदब की शान में इज़ाफ़ा किया बल्कि देश के प्रति मोहब्बत और इत्तेहाद की भावना को भी मजबूती दी।
प्रोफेसर सय्यद नवाज जैदी का बयान
प्रोफेसर सय्यद नवाज जैदी ने स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देते हुए दैनिक छठी आंख समाचार पत्र की टीम से विशेष बातचीत में कहा, “अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का यह सालाना मुशायरा न केवल एक अदबी कार्यक्रम रहा, बल्कि यह स्वतंत्रता दिवस के जश्न को और भी खास बना गया। यह महज़ एक मुशायरा नहीं था, बल्कि हमारी तहज़ीब, हमारी सांस्कृतिक धरोहर और हमारी गंगा-जमुनी रिवायतों का जश्न था।
उन्होने आगे कहा, “इस मंच पर पेश की गई शायरी ने न केवल हमारे अंदर देशप्रेम की भावना को और प्रबल किया, बल्कि इसने यह भी साबित किया कि उर्दू अदब ने हमेशा से एकता, भाईचारे और इंसानियत के संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस मुशायरे के ज़रिए हमने यह संदेश दिया है कि हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब को हम कभी मिटने नहीं देंगे। यह देश हमारा है और हम इस देश के हैं, और हमारी तहज़ीब में बसी यह मोहब्बत, इत्तेहाद और वतनपरस्ती हमेशा क़ायम रहेगी।”
प्रोफेसर जैदी ने अपने बयान में उर्दू अदब के महत्व पर भी ज़ोर दिया और कहा कि, “उर्दू हमारी साझा सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, जो सदियों से भारत की रिवायती और सांस्कृतिक विविधता का एक अटूट हिस्सा रही है। इसे संरक्षित करना और आने वाली नस्लों तक पहुंचाना हमारा फर्ज़ है।”
उनके इस बयान ने इस बात को और पुख्ता कर दिया कि उर्दू सिर्फ़ एक भाषा नहीं, बल्कि यह हमारे देश की उस सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, जिसने हिंदुस्तान की तारीख़ में अपनी अहमियत को बखूबी निभाया है।
प्रधान संपादक: वाई. के. चौधरी, दैनिक छठी आंख समाचार