नई दिल्ली। भाजपा पर भ्रष्टाचार और महिलाओं के सम्मान के मुद्दे पर दोहरे मापदंड अपनाने के आरोप लग रहे हैं। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की जब्त की गई हजारों करोड़ रुपये की संपत्तियों को आयकर विभाग ने रिहा कर दिया है। यह फैसला तब लिया गया जब पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
2021 में इन्हीं संपत्तियों को वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े आरोपों में जब्त किया गया था। तब भाजपा ने अजीत पवार और उनकी पार्टी एनसीपी को “भ्रष्टाचार की प्रतीक” बताया था। लेकिन राजनीतिक समीकरण बदलने के साथ ही भाजपा का रुख भी बदलता दिख रहा है।
भ्रष्टाचार पर भाजपा की इस कथनी-करनी के अंतर पर सवाल उठ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो अक्सर “ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा” का नारा देते हैं, अब इन आरोपों पर चुप्पी साधे हुए हैं।
इसके अलावा, भाजपा की गुप्त चुनावी चंदों पर निर्भरता और अडानी जैसे उद्योगपतियों पर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के आरोपों पर सरकार का मौन भी सवालों के घेरे में है।
क्या भाजपा अपने राजनीतिक लाभ के लिए भ्रष्टाचार और महिलाओं के मुद्दे पर समझौता कर रही है? और क्या यह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ खिलवाड़ है?
इन सवालों का जवाब देना सिर्फ भाजपा की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि एक पारदर्शी लोकतंत्र के लिए नागरिक और मीडिया का जागरूक होना भी जरूरी है।