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सीरिया में तख्तापलट: ईरान और पश्चिम एशिया के लिए संकट के बादल

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सीरिया में हाल ही में हुए तख्तापलट के बाद हालात बेहद संवेदनशील हो गए हैं। राष्ट्रपति बशर अल-असद ने रूस में शरण ली है, और ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई ने पहली बार इस मुद्दे पर खुलकर बयान दिया है। उन्होंने सीधे अमेरिका और इजराइल को इस तख्तापलट के लिए जिम्मेदार ठहराया है। खामेनेई के मुताबिक, यह तख्तापलट अमेरिका और इजराइल की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।

ईरान के लिए बढ़ता खतरा

इस तख्तापलट के बाद “एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस” (प्रतिरोध की धुरी) कमजोर हो गई है। यह धुरी ईरान, सीरिया और हिज़बुल्लाह पर आधारित थी। सीरिया में असद सरकार के गिरने के बाद, हिज़बुल्लाह भी कमजोर पड़ रहा है। इससे ईरान पर दबाव बढ़ गया है। विश्लेषकों का मानना है कि ईरान अब खुद को सुरक्षित करने और अपनी ताकत दिखाने के लिए औपचारिक रूप से परमाणु बम बनाने की ओर कदम बढ़ा सकता है।

ईरान के पास पहले से ही परमाणु हथियार बनाने की तकनीकी और आवश्यक सामग्री मौजूद है। पश्चिमी खुफिया एजेंसियों को डर है कि ईरान हथियार-ग्रेड यूरेनियम का उत्पादन कर सकता है और परमाणु हथियार विकसित कर सकता है।

खामेनेई का सख्त बयान

तेहरान में दिए गए अपने बयान में खामेनेई ने कहा कि सीरिया में जो कुछ हुआ, वह अमेरिका और इजराइल के ज़ायोनिस्ट प्लान का नतीजा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस साजिश में तुर्की ने भी अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई है। खामेनेई का कहना है कि उनके पास इस साजिश के सबूत हैं।

ईरान के प्रतिरोध की रणनीति

ईरान पर हाल ही में इजराइल द्वारा किए गए हमलों के बावजूद, ईरान ने अभी तक कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान सही समय का इंतजार कर रहा है। अब सवाल यह है कि ईरान आगे क्या कदम उठाएगा। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच, पश्चिमी देशों और इजराइल के लिए खतरा बढ़ गया है।

अमेरिका और इजराइल की चिंताएं

इजराइल को डर है कि सीरिया में असद सरकार के पतन के बाद, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज कर सकता है। अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियां भी इस संभावना से चिंतित हैं। “हारेत्ज़” जैसे इजरायली समाचार पत्रों ने भी कहा है कि ईरान अब हथियार-ग्रेड यूरेनियम का उत्पादन करने की दिशा में काम कर सकता है।

मध्य पूर्व में बढ़ता तनाव

सीरिया में नए शासक अबू मोहम्मद जूलानी के शासन में अमेरिका और इजराइल का प्रभाव बढ़ने की संभावना है। इससे क्षेत्रीय भू-राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है। खामेनेई ने इसे ईरान के अस्तित्व के लिए खतरा बताया है। उनका कहना है कि ईरान इस साजिश को सफल नहीं होने देगा।

भारत के लिए चुनौती

सीरिया के मौजूदा हालात भारत के लिए भी चिंता का विषय हैं। अगर मध्य पूर्व में तनाव बढ़ता है, तो इसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा। भारत, जो ऊर्जा के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है, को इस संकट के चलते आर्थिक और कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

संयुक्त राष्ट्र में सीजफायर का मुद्दा

इस बीच, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गाजा में सीजफायर का प्रस्ताव पारित किया है। जर्मनी और फ्रांस, जिन्होंने पहले इस पर मतदान नहीं किया था, अब प्रस्ताव के समर्थन में हैं। यह दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय मध्य पूर्व में शांति की आवश्यकता को महसूस कर रहा है।

निष्कर्ष

मध्य पूर्व में चल रहे घटनाक्रम न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी खतरा हैं। सीरिया में तख्तापलट, ईरान के बढ़ते परमाणु खतरे और इजराइल-अमेरिका की रणनीतियों के बीच तनाव बढ़ रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ईरान किस दिशा में कदम उठाता है और यह स्थिति वैश्विक राजनीति को कैसे प्रभावित करती है।

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