प्रधानमंत्री के इस रवैये पर विपक्षी दलों और आम जनता ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री के पास कपूर परिवार से मिलने का समय है, लेकिन मणिपुर की हिंसा से प्रभावित परिवारों का दर्द बांटने का समय नहीं।
बॉलीवुड और राजनीति का मेल
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा बॉलीवुड हस्तियों के साथ वीडियो और तस्वीरें जारी करने को कई लोग प्रचार तंत्र का हिस्सा बता रहे हैं। इन हस्तियों में से कुछ, जैसे सैफ अली खान और आलिया भट्ट, प्रधानमंत्री की प्रशंसा करते नजर आए। सैफ ने कहा कि प्रधानमंत्री से मिलकर उन्हें “अद्भुत ऊर्जा” मिली, जबकि आलिया ने प्रधानमंत्री की उपलब्धता और मेहनत की तारीफ की।
हालांकि, आलोचकों का कहना है कि ये वही बॉलीवुड है जिसे पहले भाजपा के प्रचार तंत्र ने निशाना बनाया था। जब सैफ अली खान और करीना कपूर के बेटे तैमूर का जन्म हुआ था, तो उन्हें धर्म के आधार पर ट्रोल किया गया था। रणबीर कपूर, जो कभी बीफ पर दिए अपने बयान के कारण विवाद में थे, आज प्रधानमंत्री की तारीफ कर रहे हैं।
यह देखा गया है कि 2014 के बाद से बॉलीवुड की आवाज़ राजनीति और सामाजिक मुद्दों पर खामोश हो गई है। पहले जहां फिल्म इंडस्ट्री रेप, महंगाई और अन्य सामाजिक समस्याओं पर खुलकर बोलती थी, वहीं अब सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने से डरती है।
कुछ हस्तियां, जैसे शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण और आमिर खान, जो पहले सामाजिक मुद्दों पर मुखर थे, अब सीधे भाजपा के निशाने पर हैं। शाहरुख के बेटे आर्यन खान को ड्रग्स केस में फंसाया गया, जबकि दीपिका पादुकोण को जेएनयू में छात्रों के समर्थन के बाद विरोध का सामना करना पड़ा।
स्वरा भास्कर, जो भाजपा की आलोचक रही हैं, का करियर लगभग खत्म कर दिया गया है। अनुराग कश्यप और अन्य कलाकारों को आयकर और अन्य मामलों में निशाना बनाया गया। इस बीच, भाजपा समर्थित फिल्मों जैसे “कश्मीर फाइल्स”, “केरला स्टोरी” और “सबर्मती” को बढ़ावा दिया गया।
प्रधानमंत्री और बलात्कारियों का समर्थन
प्रधानमंत्री मोदी पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि उन्होंने भाजपा नेताओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों पर कभी टिप्पणी नहीं की। कुलदीप सिंह सेंगर और बृजभूषण शरण सिंह जैसे विवादास्पद नेताओं को समर्थन देने के आरोप भी लगते रहे हैं।
बॉलीवुड का झुकाव और भविष्य
आज का बॉलीवुड सत्ता के आगे झुकता नजर आता है। पहले जहां फिल्में सामाजिक संदेश देती थीं, अब वे सरकार के प्रचार का हिस्सा बन गई हैं। यह स्थिति न केवल बॉलीवुड की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह दर्शाती है कि सत्ता का डर फिल्म उद्योग पर हावी हो रहा है।
यह सवाल उठाना जरूरी है कि क्या प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएँ देश की जनता की समस्याओं से जुड़ी हैं या फिर वे केवल प्रचार और छवि निर्माण तक सीमित रह गई हैं।