निजामों का शहर हैदराबाद अपने शानदार चारमीनार और स्पेशल हैदराबादी बिरयानी के लिए देशभर में पॉपुलर है. हैदराबादी बिरयानी की उत्पत्ति मध्य-पूर्व में हुई थी लेकिन आज वह भारत समेत कई देशों में लोकप्रिय हो चुकी है. वहीं जब दिल्ली पर मुगल शासन राज्य किया करते थे तो इस शहर की संस्कृति और व्यंजन भी उनसे प्रभावित थे और उन्हीं में से एक डिश है खमीरी रोटी जिसका लुत्फ आज भी लोग उठाते हैं. लेकिन जब हैदराबाद में निजामों ने शासन किया तो संस्कृति के साथ-साथ स्वाद और जायकों में भी बदलाव आए. उनके शासनकाल के दौरान खमीरी रोटी की जगह कुल्चा ने ले ली और ऐसी ही एक डिश निजामों की रसोई से जन्मी जिसका नाम रखा गया पत्थर का गोश्त.
बर्तन ले जाना भूल गए तो पत्थर पर ही बना दिए कबाब
जहां आज हम मटन को पकाने के लिए कढ़ाई या प्रेशर कुकर की मदद लेते हैं. 19वीं सदी में निजामों के खानसामे खुली आग में मटन पकाया करते थे. कहा जाता है कि पत्थर के गोश्त का इतिहास बहुत ही दिलचस्प है और इसको लेकर कई कहानियां भी पॉपुलर हैं. कहा जाता है कि इस इस रेसिपी का ईजाद 19वीं सदी के मध्य में हुआ था, जब हैदराबाद में निजाम मीर महबूब अली की सत्ता थी. महबबू अली अपने राजसी ठाठ-बाट के लिए काफी प्रसिद्ध थे. उन्हें अच्छा पहनना, अच्छा खाना और शिकार करना पसंद था. कहते हैं कि वह एक कपड़ा दोबारा कभी नहीं पहनते थे. जब निज़ाम शिकार पर जाते तो उनके बक्से कपड़ों से भरे रहते थे. उनके साथ उनके खानसामे जाया करते थे जो उन्हें स्वादिष्ट भोजन जंगल में भी कराया करते थे.
पत्थर के गोश्त का इतिहास
एक बार शिकार पर जाते वक्त खानसामे पकाने वाले बर्तन ले जाना भूल गए थे. शिकार के बाद दोपहर के समय महबूब अली को भूख लगी तो उन्होंने कबाब खाने की इच्छा जाहिर की. लेकिन खानसामे कबाब बनाए जाने वाले बर्तन लाना तो भूल गए थे इसलिए उन्होंने ग्रेनाइट पत्थर के ऊपर कबाब बनाकर रोस्ट किए थे और उसके बाद जो स्वाद आया उसे चखकर निज़ाम ने उन कबाब का नाम पत्थर के गोश्त या पत्थर के कबाब रख दिया.
ध्यान रखने योग्य बातें