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प्रमुख मुस्लिम नागरिकों ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान की सराहना की

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नई दिल्ली। एक प्रतिष्ठित मुस्लिम नागरिक समाज समूह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की समावेशी समाज के पक्ष में की गई टिप्पणी का स्वागत किया है। समूह ने इसे भारत के बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक ताने-बाने को संरक्षित करने के लिए एक सकारात्मक संकेत बताया। इस समूह में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जमीरुद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी, और उद्योगपति सईद शेरवानी जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व शामिल हैं।

भागवत का बयान और उसका महत्व

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में मंदिर-मस्जिद विवादों के बढ़ते मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो चुका है, और अब इस मुद्दे को आगे बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कुछ लोग इन मुद्दों को उठाकर “हिंदुओं के नेता” बनने की कोशिश कर रहे हैं, जो समाज में अनावश्यक विभाजन पैदा कर सकते हैं।

भागवत ने सहजीवन व्याख्यानमाला के तहत “भारत विश्वगुरु” विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा, “दुनिया को यह दिखाने की जरूरत है कि भारत सद्भावना और विविधता के साथ एकजुट रह सकता है।” उन्होंने कहा कि भारत का सांस्कृतिक मूल सद्भाव और सहजीवन पर आधारित है, और यह दुनिया के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।

मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया

भागवत के इस बयान की सराहना करते हुए मुस्लिम समुदाय के प्रमुख नेताओं ने इसे समयानुकूल और देश की एकता के लिए जरूरी बताया। एक संयुक्त बयान में, एस.वाई. कुरैशी, नजीब जंग, जमीरुद्दीन शाह, शाहिद सिद्दीकी, और सईद शेरवानी ने कहा कि आरएसएस प्रमुख का यह बयान भारत के बहुलतावादी समाज को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

उन्होंने कहा, “सरसंघचालक का यह बयान बेहद महत्वपूर्ण है और उन लोगों के लिए मार्गदर्शक हो सकता है, जो देश के मूल ताने-बाने पर हमला कर रहे हैं। यह बयान भारत और दुनिया भर में सकारात्मक सोच रखने वाले सभी लोगों को उम्मीद देता है।”

समावेशी समाज की आवश्यकता पर जोर

पत्र में आगे कहा गया है कि भारत का इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा सह-अस्तित्व और समावेशिता पर आधारित है। यह जरूरी है कि देश के सभी समुदाय, चाहे वे किसी भी धर्म या विचारधारा से हों, इस साझा संस्कृति का सम्मान करें और इसे संरक्षित रखने में योगदान दें।

इस संदर्भ में, मुस्लिम नागरिकों ने भागवत के बयान को न केवल एक सकारात्मक पहल बताया, बल्कि इसे देश के उन हिस्सों के लिए भी मार्गदर्शक कहा, जहां सांप्रदायिक तनाव देखने को मिलता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि भागवत का यह बयान उनके संगठन और समर्थकों के लिए भी एक दिशा निर्देश के रूप में काम करेगा।

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समस्याओं का समाधान संवाद से हो

इस पत्र में यह भी कहा गया कि मंदिर-मस्जिद जैसे विवादों का समाधान केवल आपसी संवाद और समझदारी से ही संभव है। देश को उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो उसकी समग्र प्रगति और विकास के लिए आवश्यक हैं।

भागवत के बयान से बढ़ी उम्मीदें

समूह ने यह भी कहा कि भागवत का बयान ऐसे समय में आया है जब देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और विभाजनकारी राजनीति का खतरा बढ़ता दिख रहा है। ऐसे में, उनका यह संदेश न केवल सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देगा, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भरोसे और सहयोग को भी मजबूत करेगा।

भारत की विविधता को बनाए रखने की अपील

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने कहा, “भारत की ताकत उसकी विविधता में है। हमें इसे किसी भी कीमत पर बनाए रखना चाहिए। भागवत का बयान इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है, और हमें उम्मीद है कि यह बयान समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करेगा।”

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जमीरुद्दीन शाह ने कहा, “हमें एक ऐसा भारत बनाना है, जहां हर धर्म, जाति, और समुदाय के लोग शांति और सद्भाव से रह सकें। भागवत ने जिस सह-अस्तित्व की बात की है, वह हमारे देश के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।”

समाज के सभी वर्गों से अपील

समूह ने समाज के सभी वर्गों से अपील की है कि वे भागवत के इस बयान को सही भावना से लें और देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए अपने-अपने स्तर पर योगदान दें।

निष्कर्ष

भागवत का यह बयान और मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया दिखाती है कि भारत में संवाद और समावेशिता की जरूरत को सभी महसूस कर रहे हैं। यदि इस दिशा में ईमानदारी से प्रयास किए जाएं, तो यह न केवल समाज में मौजूद विभाजन को कम करेगा, बल्कि भारत को विश्वगुरु बनने के अपने लक्ष्य के करीब भी ले जाएगा।

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