मंदिर विवाद में फैलाई गई झूठी खबरें
रस्तोगी परिवार ने एबीपी न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में बताया कि मंदिर की चाबी हमेशा उनके पास थी और मुसलमानों से उन्हें कभी डर नहीं लगा। परिवार ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर पर कोई अतिक्रमण नहीं हुआ और बगल का कमरा उन्होंने ही बनवाया था। इससे साफ हो गया कि भाजपा और कुछ मीडिया चैनलों ने झूठा प्रचार किया। एएनआई समेत कई एजेंसियों ने दावा किया था कि मुसलमानों ने मंदिर पर कब्जा कर लिया है, लेकिन रस्तोगी परिवार ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी धार्मिक स्थल पर सर्वेक्षण से जुड़ी रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में दी जाए और निचली अदालतें इस पर कोई कार्रवाई न करें। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 पर सुनवाई के दौरान सरकार को जवाब देने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया गया है। यह फैसला भाजपा की रणनीति को बड़ा झटका है, जो इस मुद्दे पर सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश कर रही थी।
यूपी में बढ़ते विवाद और हिंसा
संभल विवाद के दौरान प्रशासन की लापरवाही के कारण हिंसा हुई, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई। इसी तरह बहराइच और बाराबंकी में धार्मिक जुलूस के दौरान विवाद भड़काया गया। डी.जे. पर आपत्तिजनक गाने बजाना और मस्जिदों के सामने भड़काऊ नारे लगाने जैसी घटनाओं से यह साफ हो गया कि माहौल खराब करने की कोशिश हो रही है।
भाजपा के सहयोगी दल अपना दल और भाजपा के बीच भी तनाव बढ़ रहा है। अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल के पति और राज्य मंत्री आशीष पटेल पर 25 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं। भाजपा विधायक मीना सिंह ने खुद इस मामले में शिकायत दर्ज कराई है। इसके अलावा, विभागीय ट्रांसफर को लेकर मंत्री आशीष पटेल और प्रमुख सचिव देवेंद्र कुमार के बीच टकराव हुआ।
विपक्ष का भाजपा पर हमला
समाजवादी पार्टी के नेताओं ने विधानसभा में इस मुद्दे पर हंगामा किया। सपा नेता शिवपाल यादव ने भाजपा सरकार को अब तक की सबसे भ्रष्ट और धोखेबाज सरकार बताया। सपा ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर मंदिर-मस्जिद विवादों के जरिए असली मुद्दों से ध्यान भटका रही है।
निष्कर्ष
संभल मंदिर विवाद ने भाजपा की नीतियों और प्रचार तंत्र की सच्चाई को उजागर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और रस्तोगी परिवार के बयानों से यह साफ हो गया है कि मुसलमानों के खिलाफ फैलाया गया प्रोपेगेंडा झूठा था। भाजपा न केवल सांप्रदायिक राजनीति कर रही है, बल्कि अपने सहयोगी दलों के साथ भी खटपट में उलझी हुई है। आगामी चुनावों में इसका असर पड़ना तय है।