मच्छरों के प्रकोप का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 45 लाख की आबादी वाले जिले में मच्छरों को मारने वाली कीटनाशी दवाओं और उत्पादों का सालाना कारोबार 15 करोड़ रुपये तक पहुंच रहा है।
मक्खी मच्छर नाले और अलीगढ़ के ताले..। आपने ये कहावत अलीगढ़ शहर में कई बार सुनी होगी। मच्छरों के प्रकोप का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 45 लाख की आबादी वाले जिले में मच्छरों को मारने वाली कीटनाशी दवाओं और उत्पादों का सालाना कारोबार 15 करोड़ रुपये तक पहुंच रहा है। शहरी क्षेत्र में नगर निगम व देहात में ग्राम्य विकास विभाग पर मच्छर मारने की जिम्मेदारी है। मगर मच्छर जनित रोगों से लोग परेशान हैं। जिले में तकरीबन सात लाख परिवार हैं, जिसमें लगभग चार लाख परिवार इन उत्पादों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।
इस कारोबार के जानकारों की मानें तो अगर एक परिवार एक महीने में केवल 50 रुपये भी मच्छर मारने में खर्च करता है तो पूरे जिले में डेढ़ करोड़ रुपये का कारोबार होता है। अगर दस महीने की ये रकम जोड़ दें तो 15 करोड़ तक पहुंचती है, क्योंकि दस महीने तक इन दवाओं की सबसे ज्यादा मांग होती है। इसके अलावा नगर निगम और ग्राम्य विकास विभाग भी हर साल मच्छरों को मारने में लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। बावजूद इसके मच्छर न मर रहे और न गायब हो रहे हैं।
अलीगढ़ शहर के 39 मोहल्ले और देहात क्षेत्र के 104 गांव डेंगू और मलेरिया के लिए अति संवेदनशील घोषित हैं। स्वास्थ्य विभाग के स्तर से इनकी सूची नगर निगम, जिला पंचायत राज अधिकारी को भेजकर साफ-सफाई और फॉगिंग की सिफारिश कर दी गई है। नगर निगम ने फॉगिंग के लिए एक दर्जन नई मशीनें खरीद ली हैं, लेकिन फॉगिंग कहां हो रही है, इसका पता नहीं। देहात का भी कमोबेश यही हाल है।